Sonwalkar

शीशे और पत्थर का गणित

असली चेहरे के बगैर

माना किएक दिन बुझाना ही थातुम्हारा किताबी आक्रोशमगर ये सबपलक झपकते हीहो जायेगाऐसी उम्मीद न थी।कम-स-कमतेरह दिन का शोकतो मना लेतेआक्रोश की खुदखुशी पर।कुछ दिन तो रहतेबिना मुखौटों के!पर तुमने …

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अर्थहीनता

हैरत है कि आखिरक्यों जी रहे हैं लोग?जानते हुए भीनाइन्साफी का ज़हरक्यों पी रहे हैं लोग? आखिर जिन्दा रहने मेंइनका मकसद क्या है?निरर्थक जिन्दा रहने कीइनकी आखिरी हद क्या है?ऐसे …

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मेरा यार : कलाकार!

भिंड से बस्तर तकदंगों दुर्घटनाओंअत्याचारों की लपटों में-और मेरा यार, कलाकारशहनाई पर‘जय-जय-वान्ति’बजा रहा है! सुबह से शाम तकघासलेट के क्यू में खड़े हैं लोगदो जून की रोटी का भीजुटा नहीं …

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खतरए-वज़ीफा

दुश्मनदिखाई नहीं देतासाफ़-साफ़,मगर उसके हाथ दूर-दूर तकफैले हैतुम्हे मिटाने केयातुम्हे खरीदने के खेलउसनेसफाई से खेले हैं! तुम्हारे गले में पहनाया गया हारदेखते-देखते हीजंजीर बन जाता हैतुम्हारी तारीफ में कहे गए …

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परिवेश और प्रभाव

अपनी धरतीअपना परिवेश छोड़करकहाँ जायेंगे हम।जड़े तो भीतर तकगहरी धँसी हैइस माटी में। लेकिन पौधें को उगने के लिएचाहिए जलवह तो आयेगा बादलों सेबादलजो – दूर दूर के देशों से आते …

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