तूने हीरे दियेवरदान मेंऔर मैं उन्हेकंकड़ समझकरफेंकता रहा ।उन्होंने क्रान्ति…
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व्यक्तित्व
स्व.श्री दिनकर सोनवलकर
जन्म स्थान-24 मई 1932 दमोह (म.प्र.)
शिक्षा-एम.ए.( हिन्दी ,दर्शनशास्त्र)
सहपाठी – आचार्य रजनीश (सागर विश्वविद्यालय)
नौकरी – सन् 1955 – 1956 खंडवा महाविघालय के प्राध्यापक
1964 से 1970 तक सहायक प्राध्यापक दर्शनशास्त्र शासकीय महाविद्यालय, रतलाम एवम्
1970 से 1993 (सेवा निवृति तक)शा.महा.जावरा में प्राध्यापक
प्रकाशित कृतियाँ
विडंम्बना
तूने हीरे दियेवरदान मेंऔर मैं उन्हेकंकड़ समझकरफेंकता रहा ।उन्होंने क्रान्ति की मशालसौंपी थी हमेंयहाँ का बुद्धिजीवीउससेप्रचार का चूल्हा जलाकरप्रतिष्ठा की…
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अनकहा दर्द
अभिव्यक्ति के माध्यम अनेक हैशब्दों की शक्ति भी अनन्त हैपर कथ्य जो कीमती है -वह तो अनकहा रह गया। सागर…
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आत्मीय स्पर्श
बड़ों के पाँव छूने का रिवाज़इसलिए अच्छा हैकि उनके पैरों का छाले देखकरऔर बिवाईयाँ छुकरतुम जान सकोंकि जिंदगी उनकी भीकठिन…
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पीढ़ियों का दर्शक
मन्दिर में बूढ़े दादारामायण बांच रहे हैंरह रह के ध्यान उचटता हैबच्चों को डांट रहे है।बाजू के कमरे मेंभैया भाभी…
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प्रकाशित कृतियाँ
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