जिसे तुम लिख नहीं पाए
अगर वही कविता
किसी और से लिख जाए
तो सार्थकता का आनन्द
फूट पड़ना चाहिए
तुम्हारे अन्तरतम से
झरने की तरह।
आनन्द की जगह
यदि तुम होते हो कुंठित
तो मानना चाहिए
कि तुम्हारे भीतर
‘कवि‘ नहीं
एक घटिया दुकानदार
छिपा बैठा है।
जिसे तुम लिख नहीं पाए
अगर वही कविता
किसी और से लिख जाए
तो सार्थकता का आनन्द
फूट पड़ना चाहिए
तुम्हारे अन्तरतम से
झरने की तरह।
आनन्द की जगह
यदि तुम होते हो कुंठित
तो मानना चाहिए
कि तुम्हारे भीतर
‘कवि‘ नहीं
एक घटिया दुकानदार
छिपा बैठा है।