Sonwalkar

सम्पूर्ण काव्य-संग्रह

ये कविताएँ

जी, ये कविताएँकुछ अजीब ही हैं।ये पुरानों का दंभ हीचूर नहीं करतीं,नयों का नक़लीपन भीउभाडती हैं। ये कविताएँदरअसलउस ‘दिनकर’ की हैंजो हर शामपुराना डूबता हैलेकिन हर सुबहनया उगता हैं। पद्धर्मजबकल के …

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परिवेद्गा और प्रभाव

अपनी धरतीअपना परिवेश छोड़ कहाँ जाएँगे हमजड़ें तो भीतर तकगहरी धँसी हैंइसी माटी मेंलेकिन पौधे को उगने के लिएचाहिए जो जलवह तो आयेगा बादलों से !बादल-जोदूर-दूर के देशों से आते हैंलाते …

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फसल

ये अँकुराये पौधे सारेउन बेचारे हाथों में आने दोजो मरे खपे इतने दिन।आदमी और गाय बैल जुते सभीबूढ़े भी, बच्चे भी।जेठ की धूप मेंआधे पेट ही घूमे बेचारेगोबर से लीपी …

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सुर ही नही सूर्य भी बदलना है

भीड़-भरे चौराहे परतू गाता रहयहाँ के सात सुरों मेंन बँधने वाला गीत।तुझे उनकी तरहसाज-बाज की जरूरत ही क्या है ?अच्छा ही कियाजो तूने गीत का ‘स्थायी’ बदल दियामगर यह घबराहट …

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