विडंम्बना
तूने हीरे दियेवरदान मेंऔर मैं उन्हेकंकड़ समझकरफेंकता रहा ।उन्होंने क्रान्ति की मशालसौंपी थी हमेंयहाँ का बुद्धिजीवीउससेप्रचार का चूल्हा जलाकरप्रतिष्ठा की रोटीसेंकता रहा ।
तूने हीरे दियेवरदान मेंऔर मैं उन्हेकंकड़ समझकरफेंकता रहा ।उन्होंने क्रान्ति की मशालसौंपी थी हमेंयहाँ का बुद्धिजीवीउससेप्रचार का चूल्हा जलाकरप्रतिष्ठा की रोटीसेंकता रहा ।
जिसे तुम लिख नहीं पाएअगर वही कविताकिसी और से लिख जाएतो सार्थकता का आनन्दफूट पड़ना चाहिएतुम्हारे अन्तरतम सेझरने की तरह।आनन्द की जगहयदि तुम होते हो कुंठिततो मानना चाहिएकि तुम्हारे भीतर‘कवि‘ नहींएक …
अपनी धरतीअपना परिवेश छोड़ कहाँ जाएँगे हमजड़ें तो भीतर तकगहरी धँसी हैंइसी माटी मेंलेकिन पौधे को उगने के लिएचाहिए जो जलवह तो आयेगा बादलों से !बादल-जोदूर-दूर के देशों से आते हैंलाते …
ये अँकुराये पौधे सारेउन बेचारे हाथों में आने दोजो मरे खपे इतने दिन।आदमी और गाय बैल जुते सभीबूढ़े भी, बच्चे भी।जेठ की धूप मेंआधे पेट ही घूमे बेचारेगोबर से लीपी …
भीड़-भरे चौराहे परतू गाता रहयहाँ के सात सुरों मेंन बँधने वाला गीत।तुझे उनकी तरहसाज-बाज की जरूरत ही क्या है ?अच्छा ही कियाजो तूने गीत का ‘स्थायी’ बदल दियामगर यह घबराहट …