Sonwalkar

शीशे और पत्थर का गणित

पिंजरें से प्रतिबद्ध

पिंजरे का द्वारखुला हुआ हैंफिर भी वहउसी में बैठा है आश्वस्तपिंजरे कीरंगीन सलाखों पर आश्वस्त! आसमान की नीलिमायाधरती की हरियालीदोनों ही उसेनिरर्थक लगते हैं चुनौतियों कीतेज़ किरणों से भीउसके पंखों …

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एक नया कर्मकांड

एक नया कर्मकांडजनम ले रहा हैं!अभी तो शुरू हुई थीमूर्ति-भजन की प्रक्रियाफिर खड़े होने लगे बुतगाँव-गाँव! गली-गली!फिर वहीं हवा चलीअर्चन – वंदन जय – जयकार की। औपचारिकताएँघेरने लगीं जीवन कोआडम्बर …

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असली चेहरे के बगैर

माना किएक दिन बुझाना ही थातुम्हारा किताबी आक्रोशमगर ये सबपलक झपकते हीहो जायेगाऐसी उम्मीद न थी।कम-स-कमतेरह दिन का शोकतो मना लेतेआक्रोश की खुदखुशी पर।कुछ दिन तो रहतेबिना मुखौटों के!पर तुमने …

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अर्थहीनता

हैरत है कि आखिरक्यों जी रहे हैं लोग?जानते हुए भीनाइन्साफी का ज़हरक्यों पी रहे हैं लोग? आखिर जिन्दा रहने मेंइनका मकसद क्या है?निरर्थक जिन्दा रहने कीइनकी आखिरी हद क्या है?ऐसे …

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मेरा यार : कलाकार!

भिंड से बस्तर तकदंगों दुर्घटनाओंअत्याचारों की लपटों में-और मेरा यार, कलाकारशहनाई पर‘जय-जय-वान्ति’बजा रहा है! सुबह से शाम तकघासलेट के क्यू में खड़े हैं लोगदो जून की रोटी का भीजुटा नहीं …

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