Sonwalkar

सम्पूर्ण काव्य-संग्रह

विडंम्बना

तूने हीरे दियेवरदान मेंऔर मैं उन्हेकंकड़ समझकरफेंकता रहा ।उन्होंने क्रान्ति की मशालसौंपी थी हमेंयहाँ का बुद्धिजीवीउससेप्रचार का चूल्हा जलाकरप्रतिष्ठा की रोटीसेंकता रहा ।

कसौटी

जिसे तुम लिख नहीं पाएअगर वही कविताकिसी और से लिख जाएतो सार्थकता का आनन्दफूट पड़ना चाहिएतुम्हारे अन्तरतम सेझरने की तरह।आनन्द की जगहयदि तुम होते हो कुंठिततो मानना चाहिएकि तुम्हारे भीतर‘कवि‘ नहींएक …

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सुर ही नही सूर्य भी बदलना है

भीड़-भरे चौराहे परतू गाता रहयहाँ के सात सुरों मेंन बँधने वाला गीत।तुझे उनकी तरहसाज-बाज की जरूरत ही क्या है ?अच्छा ही कियाजो तूने गीत का ‘स्थायी’ बदल दियामगर यह घबराहट …

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गाँधी : एक युग-मुद्रा

गाँधी एक युग की अभिव्यक्तिजिसे उस युग के हिंसक सपने कैद नहीं कर सके,और इतिहास के आईने मेंजिसके सर्वस्व समर्पण का प्रतिबिम्बदेखती रहेंगी आनेवाली पीढ़ियाँ(ऐसा व्यक्तित्व)गाँधी एक हिम-शैलध्रुव-प्रदेश से बर्फ …

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