Sonwalkar

पीढ़ियों का दर्शक

विडंम्बना

तूने हीरे दियेवरदान मेंऔर मैं उन्हेकंकड़ समझकरफेंकता रहा ।उन्होंने क्रान्ति की मशालसौंपी थी हमेंयहाँ का बुद्धिजीवीउससेप्रचार का चूल्हा जलाकरप्रतिष्ठा की रोटीसेंकता रहा ।

पीढ़ियों का दर्शक

मन्दिर में बूढ़े दादारामायण बांच रहे हैंरह रह के ध्यान उचटता हैबच्चों को डांट रहे है।बाजू के कमरे मेंभैया भाभी खूस पूस करतेटेरीलिन साड़ी की खातिररुठ गई भाभीजीभैया मना रहे …

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कसौटी

जिसे तुम लिख नहीं पाएअगर वही कविताकिसी और से लिख जाएतो सार्थकता का आनन्दफूट पड़ना चाहिएतुम्हारे अन्तरतम सेझरने की तरह।आनन्द की जगहयदि तुम होते हो कुंठिततो मानना चाहिएकि तुम्हारे भीतर‘कवि‘ नहींएक …

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अंतहीन तलाश

कोई गुरु नहीं मिला ।खोजते – खोजतेनयन थक गये ।जिसे पाकर महक उठेमन उपवन ऐसा फूल नहीं खिलाकिन-किन दरगाहों पर सजदें कियेकिन-किन द्वारों पर झुकाया सिरकोई पुकार ही प्रतिध्वनि बनकरलोैट …

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आसक्ति

अगले क्षण क्या होगा ?हम जो आज बैठे है चेन सेमौज मस्ती में बेखबरअपना हश्र क्या होगा ?कोई नही जानता ।अनागत भविष्य कीऐसी अनिश्चित्ता कायह रहस्य हीजीवन से बाँधे है हमें …

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