Sonwalkar

खतरए-वज़ीफा

दुश्मन
दिखाई नहीं देता
साफ़-साफ़,
मगर उसके हाथ दूर-दूर तक
फैले है
तुम्हे मिटाने के
या
तुम्हे खरीदने के खेल
उसने
सफाई से खेले हैं!

तुम्हारे गले में पहनाया गया हार
देखते-देखते ही
जंजीर बन जाता है
तुम्हारी तारीफ में कहे गए शब्द

बेड़ियाँ बनकर
तुम्हारे पैरों की गति कुंठित कर देते हैं!
जिसे तुम सम्मान या
पुरस्कार समझ रहे हो
दरअसल
तुम्हें खरीदने के लिए
लगाई गई कीमत हैं!
दोस्तों,
ये कोई किस्सा नहीं
कविता परतंत्र की-
तानाशाही की/एक हकीकत है!

विद्रोह के गीत बेशक रचों
मगर उनकी तारीफों से
उनके वजीफों से
हरदम बचो!

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