Sonwalkar

व्यसन

अहम्
परोपजीवी है ।
प्रशंसा की खाद मिलती है
तभी जीवित रहता है
फिर यह बनने लगती है
एक आदत
एक व्यसन ।
ये खुराक न मिले
तो मुरझाने लगता है
व्यक्तित्व का पोैधा
और हम दोष देने लगते है
कभी आबो हवा को
कभी परिवेश को।

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