कोई गुरु नहीं मिला । खोजते – खोजते नयन थक गये । जिसे पाकर महक उठे मन उपवन ऐसा फूल नहीं खिला किन-किन दरगाहों पर सजदें किये किन-किन द्वारों पर झुकाया सिर कोई पुकार ही प्रतिध्वनि बनकर लोैट आई फिर फिर । उदासी के अंधेरे में जल उठे जगमग-जगमग ऐसा कोई दीप नहीं जला