पिंजरें से प्रतिबद्ध Leave a Comment / शीशे और पत्थर का गणित / By admin पिंजरे का द्वारखुला हुआ हैंफिर भी वहउसी में बैठा है आश्वस्तपिंजरे कीरंगीन सलाखों पर आश्वस्त!आसमान की नीलिमायाधरती की हरियालीदोनों ही उसेनिरर्थक लगते हैंचुनौतियों कीतेज़ किरणों से भीउसके पंखों के हौसले –नहीं जगते हैं।न वोअन्याय देखकर चीखता हैन आनन्द में विभोर गाता हैंवाणी उसकी – अवरुद्ध हैअब वह सिर्फ सुविधाभोगीपिंजरे से प्रतिबद्ध है।