Sonwalkar

परिवेश और प्रभाव

अपनी धरती
अपना परिवेश छोड़कर
कहाँ जायेंगे हम।
जड़े तो भीतर तक
गहरी धँसी है
इस माटी में।

लेकिन पौधें को उगने के लिए
चाहिए जल
वह तो आयेगा बादलों से
बादल
जो – दूर दूर के देशों से आते हैं

लाते हैं
कितनी  नदियों का जल
जिनका उद्गम है
अलग-अलग दिशाओं में –

इस तरह होता हूँ सम्पृक्त
सभी प्रभावों से
मुक्त आकाश के नीचे
अपने परिवेश को
जीता हुआ।

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