Sonwalkar

नया-पुराना

पुराना
अगर अपना “पुरानापन” पहचानता है,
तो नया हो जाता है

नया
यदि घिरा रहता है
“नयेपन की सीमाओं में”
तो वह पुराना ही रहता है।

अपने को
सतत् जानते परखते रहना
नयापन है।

सीमाओं-रूढ़ियों में घिरकर
जड़ हो जाना
पुरानापन है।

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