Sonwalkar

दुखों की बरसात

मन में आकाश में
दुख की बदली
कब छा जाये
इसका क्या ठिकाना
कब बरस पडे उदासी की घटाा
इसका नियम है अनजाना
लेकिन बरसती है सब पर
क्योकि सभी के घर है
एक ही आसमान के नीचे
जिसे नही है भय
अपने कीमती कपडो का
जिसका घर नही है मोम का
वह दुखों की बरसात में भी
मस्त आता है
अलमस्त गाता है ।

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