एक नया कर्मकांड जनम ले रहा हैं! अभी तो शुरू हुई थी मूर्ति-भजन की प्रक्रिया फिर खड़े होने लगे बुत गाँव-गाँव! गली-गली! फिर वहीं हवा चली अर्चन – वंदन जय – जयकार की।
औपचारिकताएँ घेरने लगीं जीवन को आडम्बर सजने लगे अहम् की कुतुबमीनार बनकर।
आए दिन, रोज–रोज फिर होने लगे शानदार भोज। जुड़ने लगी भीड़ पंडों की।
बोलने लगी तूती हथकंडों की। फिर पुजारी लेने लगा ऊँची दक्षिणा देवता मनचाहे वरदान दे रहा है।