Sonwalkar

अंतहीन तलाश

कोई गुरु नहीं मिला ।
खोजते – खोजते
नयन थक गये ।
जिसे पाकर महक उठे
मन उपवन ऐसा फूल नहीं खिला
किन-किन दरगाहों पर सजदें किये
किन-किन द्वारों पर झुकाया सिर
कोई पुकार ही प्रतिध्वनि बनकर
लोैट आई फिर फिर ।
उदासी के अंधेरे में
जल उठे जगमग-जगमग
ऐसा कोई दीप नहीं जला

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