Sonwalkar

पीढ़ियों का दर्शक

विडंम्बना

तूने हीरे दियेवरदान मेंऔर मैं उन्हेकंकड़ समझकरफेंकता रहा ।उन्होंने क्रान्ति की मशालसौंपी थी हमेंयहाँ का बुद्धिजीवीउससेप्रचार का चूल्हा जलाकरप्रतिष्ठा की रोटीसेंकता रहा ।

पीढ़ियों का दर्शक

मन्दिर में बूढ़े दादारामायण बांच रहे हैंरह रह के ध्यान उचटता हैबच्चों को डांट रहे है।बाजू के कमरे मेंभैया भाभी खूस पूस करतेटेरीलिन साड़ी की खातिररुठ गई भाभीजीभैया मना रहे …

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कसौटी

जिसे तुम लिख नहीं पाएअगर वही कविताकिसी और से लिख जाएतो सार्थकता का आनन्दफूट पड़ना चाहिएतुम्हारे अन्तरतम सेझरने की तरह।आनन्द की जगहयदि तुम होते हो कुंठिततो मानना चाहिएकि तुम्हारे भीतर‘कवि‘ नहींएक …

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मुद्दा

अब सब जानते हैमुद्दा क्या है ?सीधा और साफलोगों को चाहिए इंसाफ ।यानि मेहनत को रोटीडिग्री को नौकरीबच्चों को भविष्य, बुढ़ों को छाँवचाहे शहर हो या गाँवतकलीफ सबकी वही हेै …

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प्रेम

प्रेम ही कमजोरी हैप्रेम ही शक्ति है ।प्रेम ही पूजा हैप्रेम ही भक्ति है ।प्रेम से बंधे है सबप्रेम आसक्ति है ।सबसे जुड़ जाये तोप्रेम अनासक्ति है ।प्रेम के आकाश …

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