ये कविताएँ

जी, ये कविताएँकुछ अजीब ही हैं।ये पुरानों का दंभ हीचूर नहीं करतीं,नयों का नक़लीपन भीउभाडती हैं। ये कविताएँदरअसलउस ‘दिनकर’ की हैंजो हर शामपुराना डूबता हैलेकिन हर सुबहनया उगता हैं। पद्धर्मजबकल के …

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