कोई संकल्प पूरा नहीं होता । कितनी निष्ठा से करता हूँ प्रयोग अनुष्ठान का । शब्द, फूल, प्रेमदीप, भावगंध जुटाता हूँ सरंजाम पूजा के सामान का । पर जाने कब हो जाता है प्रमाद अनजाने सिद्धि का चक्र पूरा नहीं होता जिस लक्ष्य की दिशा में चलता हूँ कदम-कदम वह मुझसे दूर-दूर और दूर जाता है । जितनी ही अभ्यर्थना करता हूँ ज्योति की अंधकार नयनों से घूर घूर जाता है । जाने कैसे छूट जाती है लय गीत की सप्तक संवाद का पूरा नहीं होता । कोई संकल्प पूरा नहीं होता