भीड़-भरे चौराहे पर
तू गाता रह
यहाँ के सात सुरों में
न बँधने वाला गीत।
तुझे उनकी तरह
साज-बाज की जरूरत ही क्या है ?
अच्छा ही किया
जो तूने गीत का ‘स्थायी’ बदल दिया
मगर यह घबराहट कैसी
अरे सुर ही नहीं
यहाँ का सूर्य भी बदलना है तुझे।
जानता हूँ मैं
कि तू नहीं रख सकेगा
अपनी डायरी में
रेशमी हवाओं का उल्लेख,
वहाँ होगा
सिर्फ तूफानी बादलों का हिसाब।
फिर भी तु गाता रह
भूखे-कंगालों का जुलूस बन कर,
तू गाता रह
युग की धड़कनों का सत्याग्रह बन कर।
तुझे गाना ही चाहिये
जब तक सूरज कैद है उनकी मुट्ठियों में
बे-खौफ गा/ऊँचे स्वरों में/
छावनी हिलने लगी है
उनके तम्बू उखड़ने लगे हैं।