Sonwalkar

विडंम्बना

तूने हीरे दिये
वरदान में
और मैं उन्हे
कंकड़ समझकर
फेंकता रहा ।
उन्होंने क्रान्ति की मशाल
सौंपी थी हमें
यहाँ का बुद्धिजीवी
उससे
प्रचार का चूल्हा जलाकर
प्रतिष्ठा की रोटी
सेंकता रहा ।

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