भिंड से बस्तर तक
दंगों दुर्घटनाओं
अत्याचारों की लपटों में-
और मेरा यार, कलाकार
शहनाई पर
‘जय-जय-वान्ति’
बजा रहा है!
सुबह से शाम तक
घासलेट के क्यू में खड़े हैं लोग
दो जून की रोटी का भी
जुटा नहीं संजोग
और मेरा यार, कलाकार
नृत्यांगना के पैरों में
घुंघरू सजा रहा हैं
भ्रष्टाचार और महंगाई के
दो पाटों के बीच
नागरिक पिसे जा रहे हैं
और हुक्मरान
घोषणाओं का
वही रिकार्ड घिसे जा रहे हैं
और मेरा यार, कलाकार
कलावादी कविताएँ पढ़ने में
तनिक भी नहीं लजा रहा है!
कोई दफ्तर नहीं बचा बे-दाग
अमावस की रात में भी
जलते नहीं चिराग
अपढ़ आदिवासी भी उबल रहा है
‘राग दरबारी’ गा रहा है!