Sonwalkar

मृत्यु के द्वार

क्यों बार-बार चाहता है मन
कि मर जाऊँ
मर कर  देखु,
मेरे बाद क्या करती है प्रेयसी ?
क्या करते है सहधर्मी?
क्या करता है समाज?
क्या करते है यार दोस्त?
प्रियतमा आठों पहर रोती है
(फिर भी जीती है)
सहधर्मी करते है शोकसभा
जो अश्लील चुटकुलो में
बदल जाती है
समाज मेरे गुणों की चर्चा करता है
लोग लाज की खातिर ।
और यार दोस्त
मेरे संदर्भ में
खुद को नायक
बनाते हुए
गढ़ते है कथाएँ/सुनाते है संस्मरण
इस क्रूर सच्चाई को देखने से बढ़कर
और क्या होगा मरण
नही नही अभी मैं नही मरूंगा
और अगर मरा भी
तो वापस से ये दुनिया
देखने की जिद नही करूंगा

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