लोगों ने तो प्यार लुटाया झोली भर – भर मेरे मन की सीमाएँ ही छोटी पड़ गई । बचपन में दिखलाया था ध्रुव तारा मन में आसपास की चीजों पर ही दृष्टि पड़ गई जीवन की संध्या में अब ये सोच रहा हूँ हाय उमर की दुपहरिया बेकार ढ़ल गई । मित्रों ने तो साथ निभाया दूर-दूर तक अपने मन की कायरता ही मुझे छल गई ।