मन्दिर में बूढ़े दादा
रामायण बांच रहे हैं
रह रह के ध्यान उचटता है
बच्चों को डांट रहे है।
बाजू के कमरे में
भैया भाभी खूस पूस करते
टेरीलिन साड़ी की खातिर
रुठ गई भाभीजी
भैया मना रहे हैं उनको
घिसे पिटे अनुभवों से
रीतिकालीन प्रणय चेष्टाओं से।
छपरी में बैठी है
बहन और उसकी सहेलियाँ
प्रोफेसर के अध्यापन पर
नई नई फैशन पर
पुस्तक और सिनेमा पर
भावी जीवन के सपनों पर
जोरदार चर्चा चलती है।
और उधर आँगन में छोटा भाई
अपने उपद्रवी मित्रों संग
रचता है षडयंत्र मैटनी जाने का।
चार जगह
ये चार पीढ़ियों के प्रतीक
और मैं केवल दर्शक?