Sonwalkar

कसौटी

जिसे तुम लिख नहीं पाए
अगर वही कविता
किसी और से लिख जाए
तो सार्थकता का आनन्द
फूट पड़ना चाहिए
तुम्हारे अन्तरतम से
झरने की तरह।
आनन्द की जगह
यदि तुम होते हो कुंठित
तो मानना चाहिए
कि तुम्हारे भीतर
‘कवि‘ नहीं
एक घटिया दुकानदार
छिपा बैठा है।

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